Saturday, November 29, 2008

गीत- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

चलो फिर से मुस्कुराएँ,चलो फिर से दिल जलाएँ
जो गुज़र गई हैं रातें,उन्हें फिर जगा के लायें,
जो बिसर गई हैं बातें,उन्हें याद में बुलाएँ
चलो फिर से दिल लगाएं चलो फिर से मुस्कुराएँ।

किसी शै नशीं पे झलकी, वोह धनक किसी क़बा की,
किसी रग में कसमसाई, वो कसक किसी अदा की,
कोई हर्फ़-ऐ-बे-मुरव्वत,किसी कुंज-ऐ-लब से छूटा
वोह छनक के शीशा-ऐ-दिल,ते बाम फिर से टूटा ,
ये मिलन की , ना मिलन की ,ये लगन की और जलन की,
जो सहीं हैं वारदातें ,जो गुज़र गई हैं रातें,
जो बिसर गयी हैं बातें।
कोई इन की धुन बनाएं, कोई इन का गीत गाएं,
चलो फिर से मुस्कुराएं,चलो फिर से दिल जलाएँ।

No comments: