Tuesday, August 18, 2009

सारे सुख़न हमारे- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हम ने सब शेर में सँवारे थे,
हम से जितने सुख़न तुम्हारे थे।

रंग-ओ-खुशबू के हुस्न-ओ-खूबी के,
तुम से जितने इस्तिआरे थे।

तेरे क़ौल-ओ-क़रार से पहले ,
अपने कुछ और भी सहारे थे।

जब वोह लअलगुहर हिसाब किए,
जो तेरे गम ने दिल पे वारे थे।

मेरे दामन आ गिरे सारे,
जितने तश्त-ऐ-फलक में तारे थे।

उम्र जावेद की दुआ करते,
फ़ैज़ इतने वो कब हमारे थे।


No comments: