Friday, January 16, 2009

लाल झंडा

लाल झंडा

"लाल झंडा फ़ेंक दो " ऐ देश भक्तों क्या कहा,
ये तो है सर्मायादारों की लीडरों की सदा
ये सदा उनकी है जिनकी नफ़ाखोरी का जुनूँ
चूसता है सयाने मज़दूर से दिन रात खूँ
ये सदा उनकी है जो बर्तानिया के हैं गुलाम,
ये सदा उनकी है जो सिंघानिया के हैं गुलाम,
ये सदा उनकी है टाटा ने उभारा है जिन्हें ,
ये सदा उनकी है बिरला ने संवारा है जिन्हें,
दुश्मनी ने कर दिया है तुम को कितना बेखबर
किसका नग्मा गा रहे हो कांग्रेस के साज़ पर
" लाल झंडा फ़ेंक दो " हिटलर पुकारा था यही
"लाल झंडा फ़ेंक दो " टोजो का नारा था यही,
"लाल झंडा फ़ेंक दो" था मुसोलिनी का ये हुक्म
क्या उन्हीं के रास्तों पर चल रहे हो आज तुम?

ऐ के तुम करने उठे हो आज हम से दोस्ती,
लाल झंडा किस का झंडा है ये सोचा है कभी ?
ये वोह झंडा है लरज़ जाते हैं जिन से ताजदार
ये वोह झंडा है उठे हैं ले के जिस को कामगार,
ये वोह झंडा है किया है जिस ने हम को सुर्ख़रू
इस में है "पापा"मियां के गर्म सीने का लहू,
इस की लहरों में है "मारुती" की अंगडाई का रंग
इस की रंगत में कभी है "बाघमारे " की उमंग
इस की सुर्खि में है मजदूरों किसानों का लहू
इस में है कय्युर के कटील जवानों का लहू ।

तुम ने काहे को सुनी होगी कभी ये दास्ताँ
नाम मारुती था किस का कौन थे पापा मियाँ
बाघमारे को मगर पहचानते होगे ज़रूर
अपने ही मारे हुए को जानते होंगे ज़रूर
कांग्रेस की ही वज़ारत जब यहाँ थी हुक्मराँ
सीना मज़दूर पर बरसती दनादन गोलियाँ
कौम की पहली हुकूमत और ये ज़ुल्म-ओ-जफ़ा
अपना साथी बाघमारे जान से मारा गया।
किस क़दर अफ़सोस है ऐ भोले भाले दोस्तों,
तुन हमीं से कह रहे हो "लाल झंडा फ़ेंक दो "?

ये वो झंडा है जो जानों से भी प्यारा है हमें
इस ने हर पस्ती हर दलदल से उबारा है हमें,
इस ने गुर तन्ज़ीम-ओ-कौत का सिखाया है हमें
एकता का रास्ता इसने दिखाया है हमें
इस के दामन में जगह पता नहीं फतना फसाद
आज को सब को सिखाता है ये झंडा ऐतहाद
मुल्क में फैला रहे हैं आज कल जो इन्तशार
कर रहा है कौन इन बहके हुओं को होशियार
जब वतन में हर तरफ़ था दौर दौरअह यास का
किस ने दर जेलों के खडकाए के लीडर हो रहा
झूठ का जब हुक्मरानों ने बिछा रखा था दाम,
लग रहा था कांग्रेस पर फाशेद का एतहाम
मुल्क भर से कौन उठा कांग्रेस के नाम पर
बन के बिजली कौन टूटा साम्राजी दाम पर
जब दबा रखा था जालिम नफ़ाखोरों ने अनाज,
बिक रही थी रास्तों में माँओं ओउर बहनों की लाज,
कौन उठा बंगाल को उस दम बचाने के लिए?
भ्होख के जालिम शिकंजे से छुडाने के लिए,
आ गया था सर पे जब जापान दन्नाता हुआ,
कौन उठा था हिफाज़त की क़सम खाता हुआ?
लड़ रहा था कौन उस दिन मुल्क-ओ-मिल्लत के लिए,
किस ने जद्दोजहद की कौमी हकुमत के लिए?

मुश्किलों में काम जो आता है वो हमदम है ये
जो हमारे सर पे लहराता है वो परचम है ये,

यूँ तो झंडे और भी हैं मुल्क में छोटे बड़े,
कौन लड़ता है मगर मेहनतकशों के वास्ते
तुम इलेक्शन के लिए हम पर हुए हों मेहरबां
ये इलेक्शन ख़त्म हो फिर तुम कहाँ और हम कहाँ
कौन फिर सर्मायादारों से बचायेगा हमें
कौन बोनस कौन महंगाई दिलाएगा हमें
कोई कौत हम से ये झंडा हम से छुडा सकती नहीं
कोई बिजली इस फरेरे को जला सकती नहीं,
ये वो झंडा है जो अमरीका में लहराता है आज,
ये वो झंडा है जो लन्दन में भी बल खाता है आज,
ये वो झंडा है जो है paris के दिल पर हुक्मरान
ले रहा है सीना-ऐ-बर्लिन पे भी अंगडाइयां
ये वो झंडा है जो कुल योरप पे है छाया हुआ,
चीन के रंगीन अफ़क़ पर भी है लहराया हुआ,

ये वो है अपना ग़रीबों ने बनाया है जिसे
ये वो है जावा ने काँधे पर उठाया है जिसे,
ले के ये झंडा यूंही आगे बढे जायेंगे हम,
चढ़ के फांसी पर भी इस झंडे को लहराएंगे हम

nazb कर देंगे इसे इक रोज़ हर दीवार में
कारखानों में मिलों में खेत में बाज़ार में







याद- फ़ैज़

याद
दस्त-ऐ-तन्हाई में ऐ जान-ऐ-जहाँ लरजाँ हैं
तेरी आवाज़ के साए तेरे होंठों के सराब
दस्त-ऐ-तन्हाई में दूरी के ख़स-ओ-ख़ाक तले,
खिल रहें हैं तेरे पहलू के सुमन और गुलाब
उठ रही है कहीं कुर्बत से तेरी साँस की आंच,
अपनी खुशबू में सुलगती हुई मद्धम मद्धम
दूर उफक पार चमकती हुई कतरा कतरा,
गिर रही है तेरी दिलदार नज़र की शबनम।

इस क़दर प्यार से ऐ जान-ऐ-जहाँ रखा है दिल के रुखसार पे उस वक्त तेरी याद ने हाथ,
यूँ गुमान होता है गर च अभी सुबहे फ़राक़,ढल गया हिज्र का दिन आ भी गई वस्ल की रात.