तलातुम का अर्थ है जोश , आवेग , इसे ज्वार भाते या समंदरी तूफ़ान के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है:
ت+ل+ا+ط+م=تلاطم
इसमें दो अलग अलग "त " का उपयोग है :
त(ت) और तोय(ط)
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Friday, August 14, 2009
क्या हिंद का ज़िन्दाँ- जोश मलीहाबादी
क्या हिंद का ज़िन्दाँ काँप रहा है,
गूँज रहीं हैं तक्बीरें,
उकताए हैं शायद कुछ कैदी,
और तोड़ रहे हैं,जंजीरें ।
दीवारों के नीचे आ आ कर
क्यों जमा हुए हैं ज़िन्दानी,
सीनों में तलातुम बिजली का,
आंखों में चमकती शमशीरें।
क्या उनको ख़बर थी होठों पर,
जो मोहर लगाया करते थे,
इक रोज़ इसी खामोशी से ,
तप्केंगी दहकती तक़रीरें।
सम्हलो के ज़िन्दाँ गूँज उठा,
झपटो के वो कैदी छूट गए,
उठ्ठो के वो बैठी दीवारें,
दौडो के वो टूटी जंजीरें।
गूँज रहीं हैं तक्बीरें,
उकताए हैं शायद कुछ कैदी,
और तोड़ रहे हैं,जंजीरें ।
दीवारों के नीचे आ आ कर
क्यों जमा हुए हैं ज़िन्दानी,
सीनों में तलातुम बिजली का,
आंखों में चमकती शमशीरें।
क्या उनको ख़बर थी होठों पर,
जो मोहर लगाया करते थे,
इक रोज़ इसी खामोशी से ,
तप्केंगी दहकती तक़रीरें।
सम्हलो के ज़िन्दाँ गूँज उठा,
झपटो के वो कैदी छूट गए,
उठ्ठो के वो बैठी दीवारें,
दौडो के वो टूटी जंजीरें।
ख़स या ख़स-ओ-खाशाक
ख़स याने घास,(सूखी घास), ख़स-ओ-खाशाक याने घास-फूस,कचरा :
क़+ह+स+ओ+खा+श+अ+क=ख़स-ओ-खाशाक
خ+س+و+خ+ا+ش+ا+ک=خشوخاشاک
क़+ह+स+ओ+खा+श+अ+क=ख़स-ओ-खाशाक
خ+س+و+خ+ا+ش+ا+ک=خشوخاشاک
रवाँ
रवाँ का अर्थ है बहने वाला,प्रवाही , प्राणवायु :
र+व+आँ= रवाँ
ر+و+ا+ں=رواں
अजीम शायर जोश मलीहाबादी ने कहा था(और ये अश्शार शायद भारत के विभाजन के वक्त के हैं)
"ए वतन , मेरे वतन रूह-ऐ-रवाँ-अहरार "
यानी ए वतन तू जो स्वतंत्र और उदारवादी लोगों का प्राण,प्राणवायु है।
( संपूर्ण ग़ज़ल के लिए लिंक पर क्लिक करें)
र+व+आँ= रवाँ
ر+و+ا+ں=رواں
अजीम शायर जोश मलीहाबादी ने कहा था(और ये अश्शार शायद भारत के विभाजन के वक्त के हैं)
"ए वतन , मेरे वतन रूह-ऐ-रवाँ-अहरार "
यानी ए वतन तू जो स्वतंत्र और उदारवादी लोगों का प्राण,प्राणवायु है।
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अहरार
अहरार बहोत अच्छा शब्द लगता है मुझे,इस के मानीं हैं, सभ्य और सज्जन लोग, उदारवादी,स्वतंत्र ।
अ+ह+र+आ+र=अहरार
ا+ح+ر+ا+ر=احرار
अ+ह+र+आ+र=अहरार
ا+ح+ر+ا+ر=احرار
ए वतन मेरे वतन - जोश मलीहाबादी
ऐ वतन,मेरे वतन,रूह-ऐ-रवाँ-अहरार ,
ऐ के ज़र्रों में तेरे बू-ए-चमन , रंग-ए-बहार,
रेज़ अल्मास के तेरे ख़स-ओ-खाशाक में हैं,
हड्डियां अपने बुजुर्गों की तेरी खाक़ में हैं,
तुझसे मुंह मोड़ की मुंह अपना दिखेंगे कहाँ,
घर जो छोडेंगे तो फिर छाँव निछाएंगे कहाँ,
बज़्म-ए-यार में आराम ये पाएंगे कहाँ,
तुझसे हम रूठ के जाएंगे तो जाएंगे कहाँ।
ऐ वतन मेरे वतन,ऐ वतन मेरे वतन।
ऐ के ज़र्रों में तेरे बू-ए-चमन , रंग-ए-बहार,
रेज़ अल्मास के तेरे ख़स-ओ-खाशाक में हैं,
हड्डियां अपने बुजुर्गों की तेरी खाक़ में हैं,
तुझसे मुंह मोड़ की मुंह अपना दिखेंगे कहाँ,
घर जो छोडेंगे तो फिर छाँव निछाएंगे कहाँ,
बज़्म-ए-यार में आराम ये पाएंगे कहाँ,
तुझसे हम रूठ के जाएंगे तो जाएंगे कहाँ।
ऐ वतन मेरे वतन,ऐ वतन मेरे वतन।
रिंद या रिन्दां
रिंद एक वचन है और रिन्दां उसका बहु वचन, अर्थ है शराबी,रसिक या वह जो धार्मिक बन्धनों से मुक्त हो।
ر+ن+د=رند
ر+ن+د+ا+ن=رندان
ر+ن+د=رند
ر+ن+د+ا+ن=رندان
विपरीत या विलोम: पारसा
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