Saturday, May 16, 2009

रंग-ऐ-पैराहन-फ़ैज़

रंग-ऐ-पैराहन का,खुशबू-ऐ-ज़ुल्फ़ लहराने का नाम,
मौसम-ऐ-गुल है तुम्हारे बाम पर आने का नाम।

दोस्तों,उस चश्म-ओ-लब की कहो जिसके बगैर,
गुलिस्तान की बात रंगीं है न मैखाने का नाम।

फिर नज़र में फूल महके दिल में फिर शम्में जलीं,
फिर तसव्वुर ने किया उस बज़्म में जाने का नाम।

नज़राना-कैफ़ी आज़मी

तुम परेशां न हो बाब-ऐ-करम वाँ न करो ,
और कुछ देर पुकारूँगा चला जाऊंगा
इस कूचे में जहाँ चाँद उगा करते हैं ,शब्-ऐ-तारीक़ गुजारूँगा, चला जाऊँगा।
रास्ता भूल गया या यही मंजिल है मेरी,
कोई लाया है के ख़ुद आया हूँ मालूम नहीं
कहते हैं हुस्न की नज़रें भी हसीं होती हैं
मै भी कुछ लाया हूँ, क्या लाया हूँ मालूम नहीं ।

यूँ तो जो कुछ भी था मेरे पास मै सब बेच आया
कहीं इनाम मिला और कहीं कीमत भी नहीं
कुछ तुम्हारे लिए आंखों में छुपा रखा है
देख लो , और न देखो तो शिकायत भी नहीं।

एक तो इतनी हसीं दूसरे ये आराइश ,
जो नज़र पड़ती है चेहरे पे ठहर जाती है,
मुस्कुरा देती हो अगर रस्मन भी कभी महफिल में
एक धनक टूट के सीने में बिखर जाती है।

गर्म बोसों से तराशा हुआ नाज़ुक पैकर,
जिसकी इक आंच से हर रूह पिघल जाती है,
मैंने सोचा है तो सब सोचते होंगे शायद,
प्यास इस तरह भी क्या सांचे में ढल जाती है।

क्या कमी है जो करोगी मेरा नजराना कबूल,
चाहने वाले बहोत चाह के अफ़साने बहोत,
एक ही रात सही गर्मी-ऐ-हंगाम-ऐ-इश्क़,
एक ही रात में जल मरते हैं परवाने बहोत।

फिर भी एक रात में सौ तरह के मोड़ आते हैं,
काश तुमको कभी तन्हाई का एहसास न हो
काश ऐसा न हो घेरे रहे दुनिया तुम को,
और इस तरह की जिस तरह कोई पास न हो।

आज की रात जो मेरी ही तरह तनहा है
मै किसी तरह गुजारूँगा, चला जाऊंगा
तुम परेशां न हो बाब-ऐ-करम-वाँ न करो
और कुछ देर पुकारूँगा,चला जाऊंगा।