'आइना देख' अपना सा मुंह ले के रह गए,
साहब को दिल न देने पे कितना गुरूर था,
क़ासिद को अपने हाथ से गर्दन न मारिये,
उसकी खता नहीं है ये मेरा क़सूर था।
This is for all those who love urdu,would like to Read and write Urdu.
Monday, July 27, 2009
ग़ालिब
दोस्त' गम्ख्वारी में मेरी सअइ फरमाएंगे क्या?
ज़ख्म के भरने तलक,नाखून न बढ़ जायेंगे क्या?
बेनयाज़ी हद से गुज़री "बन्दापरवर "कब तलक?
हम कहेंगे हाल-ए-दिल और आप फरमाएंगे - क्या?
हज़रात-ए-नासेह गर आवें,दीद-ओ-दिल फर्श-ए-राह,
कोई मुझ को ये तो समझा दो,के समझावेंगे क्या?
आज वां तेग़-ओ-कफ़न बांधे हुए जाता हूँ मै
अज़र मेरे क़त्ल करने में वोह अब लावेंगे क्या?
गर किया नासेह ने हम की कैद 'अच्छा' यूँ सही,
ये जूनून-ए-इश्क़ के अंदाज़ छूट जावेंगे क्या?
खानजाद-ए-ज़ुल्फ़ हैं, ज़ंजीर से भागेंगे क्यों?
हैं गिरफ्तार-ए-वफ़ा ,ज़िन्दाँ से घबराएँगे क्या?
है अब इस म'अमूर में क़हत-ए-ग़म-ए-उल्फत 'असद',
हम ने ये माना "दिल्ली में रहें " - खायेंगे क्या?
ज़ख्म के भरने तलक,नाखून न बढ़ जायेंगे क्या?
बेनयाज़ी हद से गुज़री "बन्दापरवर "कब तलक?
हम कहेंगे हाल-ए-दिल और आप फरमाएंगे - क्या?
हज़रात-ए-नासेह गर आवें,दीद-ओ-दिल फर्श-ए-राह,
कोई मुझ को ये तो समझा दो,के समझावेंगे क्या?
आज वां तेग़-ओ-कफ़न बांधे हुए जाता हूँ मै
अज़र मेरे क़त्ल करने में वोह अब लावेंगे क्या?
गर किया नासेह ने हम की कैद 'अच्छा' यूँ सही,
ये जूनून-ए-इश्क़ के अंदाज़ छूट जावेंगे क्या?
खानजाद-ए-ज़ुल्फ़ हैं, ज़ंजीर से भागेंगे क्यों?
हैं गिरफ्तार-ए-वफ़ा ,ज़िन्दाँ से घबराएँगे क्या?
है अब इस म'अमूर में क़हत-ए-ग़म-ए-उल्फत 'असद',
हम ने ये माना "दिल्ली में रहें " - खायेंगे क्या?
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