दाग्स्तानी खातून और शायर बेटाउस ने जब बोलना न सीखा था,उस की हर बात मै समझती थी अब वो शायर बना है नाम-ऐ-खुदा लेकिन् अफ़सोस कोई बात उस की मेरे पल्ले ज़रा नही पड़ती।
आज से बारह बरस पहले बड़ा भाई मेरा ,स्तालिनग्राद की जंग में काम आया था।मेरी माँअब भी लिए फिरती है पहलू में ये ग़म जब से अब तक है वही तन पे रू-ऐ-मातम।और इस दुःख से मेरी आँख काम गोशा तर है,अब मेरी उम्र मेरे भाई से कुछ बढ़ कर है।