Tuesday, April 28, 2009

दाग्स्तानी खातून और शायर बेटा

दाग्स्तानी खातून और शायर बेटा

उस ने जब बोलना न सीखा था,
उस की हर बात मै समझती थी
अब वो शायर बना है नाम-ऐ-खुदा
लेकिन् अफ़सोस कोई बात उस की
मेरे पल्ले ज़रा नही पड़ती।

भाई

आज से बारह बरस पहले बड़ा भाई मेरा ,
स्तालिनग्राद की जंग में काम आया था।
मेरी माँअब भी लिए फिरती है पहलू में ये ग़म
जब से अब तक है वही तन पे रू-ऐ-मातम।
और इस दुःख से मेरी आँख काम गोशा तर है,
अब मेरी उम्र मेरे भाई से कुछ बढ़ कर है।