मुझ से पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग
(धन्यवाद डॉ अमर ज्योति का -जिन्होंने इस अनुवाद में मेरी मदद की)
मुझ से पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग
मैंने समझा के तू है तो दरख्शां है हयात,
तेरा ग़म है तो ग़म-ऐ-दहर का झगड़ा क्या है?
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात,
तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है?
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूं हो जाए ,
यूँ न था मैंने फ़क़त चाह था के यूँ हो जाए,
और भी दुःख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा ,
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा,
अनगिनत सदियों के तारीक़ बहिमाना तासम ,
रेशम-ओ-अतलस-ओ-कमखाब में बुनवाए हुए,
जा बजा बिकते हुए कूचा-ओ-बाज़ार में जिस्म,
खाक में लिपटे हुए खून में नहलाए हुए,
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे,
अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मगर क्या कीजे,
और भी दुःख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा,
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा,
मुझ से पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग।