Thursday, May 28, 2009

वासोख्तः-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सच है हमीं को आप के शिकवे बजा न थे,
बेशक सितम जनाब के सब दोस्ताना थे।

हाँ! जो जफा भी आप ने की कायदे से की,
हाँ हम ही कारबंद-ऐ-उसूल-ऐ-वफ़ा न थे।

आए तो यूँ के जैसे हमेशा थे मेहरबां,
भूले तो यूँ के गोया कभी आशना न थे।

शाख़ पर - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

शाख़ पर खून-ऐ-गुल रवाँ है वही,
शोखी-ऐ-रंग-गुलिस्तान है वही ।

सर वही है तो आस्तां है वही ,
जाँ वही है तो जान-ऐ-जाँ है वही।

अब जहाँ मेहरबाँ नहीं कोई ,
कूचा-ऐ-यार मेहरबां है वही।

बरक़ सौ बार गिर के खाक हुई,
रौनक़-ऐ-खाक-ऐ-आशियाँ है वही।

आज की शब विसाल की शब है,
दिल से हर रोज़ दास्ताँ है वही।

चाँद तारे इधर नही आते,
वरना ज़िन्दाँ में आसमान है वही .