It was the one of those eveings during Ramzaan,Me alongwith with my few other foody friends,
went to bhedi baazaar in Mumbai,we tried street food and the famous "Barah handi" situated
in a thinly street next to Badshah juice shop in Crawford market,however this post is not about the food adventure,I found in Bhedi bazaar the most amazing shop where i found complete works of Faiz,Mirza Ghalib and many others.It was a pleasant surprise,I was a real armature then and i haven't taken big leaps in Urdu studies however the joy to find such books on really affordable prices made me happy.
I wrote this post when i read posts from people who were not able to find these works and if one needs to find the complete works,He can visit Bhedi bazaar in Mumbai,These books are available at Usmania book store at Muhammad Ali Road.
This is for all those who love urdu,would like to Read and write Urdu.
Tuesday, May 26, 2009
नौह-फैज़ अहमद फ़ैज़
मुझे शिकवा है मेरे भाई के तुम जाते हुए,
ले गए साथ मेरी उम्र-ऐ-गुज़िश्ता की किताब ,
उसमें तो मेरी बहोत कीमती तस्वीरें थीं,
उसमें बचपन था मेरा और मेरा अहद-ऐ-शबाब,
उस के बदले मुझे तुम दे गए जाते जाते,
अपने गम का ये दमकता हुआ खूँ रंग गुलाब,
क्या करून भाई ! ये ऐज़ाज़ में क्यों न कर पहनूं,
मुझ से ले लो मेरी सब चाक कमीज़ों का हिसाब,
आखरी बार है! लो मान लो इक ये भी सवाल,
आज तक तुम से मई लौटा नहीं मायूस जवाब,
आ के ले जाओ तुम अपना ये दमकता हुआ फूल,
मुझको लौटा दो मेरी उम्र-ऐ-गुज़िश्ता की किताब।
ले गए साथ मेरी उम्र-ऐ-गुज़िश्ता की किताब ,
उसमें तो मेरी बहोत कीमती तस्वीरें थीं,
उसमें बचपन था मेरा और मेरा अहद-ऐ-शबाब,
उस के बदले मुझे तुम दे गए जाते जाते,
अपने गम का ये दमकता हुआ खूँ रंग गुलाब,
क्या करून भाई ! ये ऐज़ाज़ में क्यों न कर पहनूं,
मुझ से ले लो मेरी सब चाक कमीज़ों का हिसाब,
आखरी बार है! लो मान लो इक ये भी सवाल,
आज तक तुम से मई लौटा नहीं मायूस जवाब,
आ के ले जाओ तुम अपना ये दमकता हुआ फूल,
मुझको लौटा दो मेरी उम्र-ऐ-गुज़िश्ता की किताब।
हमारे दम से है-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
हमारे दम से है कू-ऐ-जुनूँ में अब भी खजल,
अबा-ऐ-शेख़ क़बा-ऐ-अमीर-ओ-ताज-ऐ-शही।
हमीं से सुन्नत-ऐ-मंसूर-ओ-कैस जिंदा है,
हमीं से बाकी है गुल-दामनी -ओ-कजकुलही ।
अबा-ऐ-शेख़ क़बा-ऐ-अमीर-ओ-ताज-ऐ-शही।
हमीं से सुन्नत-ऐ-मंसूर-ओ-कैस जिंदा है,
हमीं से बाकी है गुल-दामनी -ओ-कजकुलही ।
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