गुहर या गौहर का अर्थ है , मोती।
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Tuesday, August 18, 2009
सारे सुख़न हमारे- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
हम ने सब शेर में सँवारे थे,
हम से जितने सुख़न तुम्हारे थे।
रंग-ओ-खुशबू के हुस्न-ओ-खूबी के,
तुम से जितने इस्तिआरे थे।
तेरे क़ौल-ओ-क़रार से पहले ,
अपने कुछ और भी सहारे थे।
जब वोह लअल ओ गुहर हिसाब किए,
जो तेरे गम ने दिल पे वारे थे।
मेरे दामन आ गिरे सारे,
जितने तश्त-ऐ-फलक में तारे थे।
उम्र जावेद की दुआ करते,
फ़ैज़ इतने वो कब हमारे थे।
हम से जितने सुख़न तुम्हारे थे।
रंग-ओ-खुशबू के हुस्न-ओ-खूबी के,
तुम से जितने इस्तिआरे थे।
तेरे क़ौल-ओ-क़रार से पहले ,
अपने कुछ और भी सहारे थे।
जब वोह लअल ओ गुहर हिसाब किए,
जो तेरे गम ने दिल पे वारे थे।
मेरे दामन आ गिरे सारे,
जितने तश्त-ऐ-फलक में तारे थे।
उम्र जावेद की दुआ करते,
फ़ैज़ इतने वो कब हमारे थे।
बासठ्वीं सालगिरह पर - "तुम ही कहो "- फ़ैज़
जब दुःख की नदिया में हम ने,जीवन की नाव डाली थी,
था कितना कस बल बाहों में, लोहों में कितनी लाली थी।
यूँ लगता था, दो हाथ लगे और नाव पूरम पार चली,
ऐसा न हुआ , हर धारे में कुछ अनदेखी मझधारें थीं,
कुछ मांझी थे अनजान बहुत,
कुछ बे परखीं पतवारें थीं,
अब जो भी चाहो छान करो,
अब जितना चाहो दोष धरो,
नदिया तो वही है नाव वही,
अब तुम ही कहो क्या करना है,
अब कैसे पार उतरना है।
जब अपनी छाती में हम ने,
उस देस के घाव देखे थे,
था वेदों पर विश्वास बहुत,
और याद बहुत से नुस्खे थे ,
यूँ लगता था बस कुछ दिन में ,
सारी बिपदा कट जायेगी,
और सब घाव भर जाएंगे,
ऐसा न हुआ की रोग अपने ,
कुछ इतने ढेर पुराने थे,
वेद उनकी टोह को पा न सके,
और टोटके सब बेकार गए,
अब जो भी चाहो छान करो,
अब जितना चाहो दोष धरो ,
छाती तो वही है,
घाव वही,
अब तुम ही कहो क्या करना है,
ये घाव कैसे भरना है।
था कितना कस बल बाहों में, लोहों में कितनी लाली थी।
यूँ लगता था, दो हाथ लगे और नाव पूरम पार चली,
ऐसा न हुआ , हर धारे में कुछ अनदेखी मझधारें थीं,
कुछ मांझी थे अनजान बहुत,
कुछ बे परखीं पतवारें थीं,
अब जो भी चाहो छान करो,
अब जितना चाहो दोष धरो,
नदिया तो वही है नाव वही,
अब तुम ही कहो क्या करना है,
अब कैसे पार उतरना है।
जब अपनी छाती में हम ने,
उस देस के घाव देखे थे,
था वेदों पर विश्वास बहुत,
और याद बहुत से नुस्खे थे ,
यूँ लगता था बस कुछ दिन में ,
सारी बिपदा कट जायेगी,
और सब घाव भर जाएंगे,
ऐसा न हुआ की रोग अपने ,
कुछ इतने ढेर पुराने थे,
वेद उनकी टोह को पा न सके,
और टोटके सब बेकार गए,
अब जो भी चाहो छान करो,
अब जितना चाहो दोष धरो ,
छाती तो वही है,
घाव वही,
अब तुम ही कहो क्या करना है,
ये घाव कैसे भरना है।
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