Monday, June 22, 2009

तुम - कैफ़ी आज़मी

शगुफ्तगी का लताफत का शाहकार हो तुम,
फ़क़त बहार नहीं हासिल-ऐ-बहार हो तुम,
जो इक फूल में है कैदवोह गुलिस्तान हो,
जो इक कली में है पिन्हाँ वो लालाज़ार हो तुम।

हलावतों की तमन्ना,मलाहतों की मुराद,
ग़रूर कलियों का कलियों का इन्कसार हो तुम,
जिसे तरंग में फितरत ने गुनगुनाया है,
वो भैरवी हो , वो दीपक हो,वो मल्हार हो तुम ।
तुम्हारे जिस्म में ख्वाबीदा हैं हजारों राग,
निगाह छेड़ती है जिसको वोह सितार हो तुम,
जिसे उठा न सकी जुस्तजू वो मोती हो,
जिसे न गूँथ सकी आरज़ू वो हार हो तुम।
जिसे न बूझ सका इश्क़ वो पहेली हो,
जिसे समझ न सका प्यार वो प्यार हो तुम
खुदा करे किसी दामन में जज़्ब हो न सके
ये मेरे अश्क-ऐ-हसीं जिन से आशकार हो तुम.



अल्लाह रे!शबाब का ज़माना

हर जुम्बिश-ए-चश्म वालहाना,हर मौज-ए-निगाह साहराना,
अल्लाह रे !शबाब का ज़माना
अपनी ही अदा पे आप सदके,अपनी ही नज़र का ख़ुद निशाना,
अल्लाह रे! शबाब का ज़माना
अपने ही से आप महो तमकीं,अपने ही से ख़ुद फरेब खाना,
अल्लाह रे !शबाब का ज़माना
ये जौक-ए-नज़र ये बदगुमानी,चिलमन के क़रीब छुप के आना,
अल्लाह रे !शबाब का ज़माना
पलकों में ये बेकरार वादा,चितवन में ये मुतमईन बहाना,
अल्लाह रे !शबाब का ज़माना
ये बच के बचा के मश्क-ऐ-अम्ज़ा,ये सोच समझ के मुस्कुराना,
अल्लाह रे !शबाब का ज़माना
ये मस्त खरामियाँ दुहाई,इक इक कदम पे लडखडाना ,
अल्लाह रे !शबाब का ज़माना
माथे पे ये संदली तबस्सुम,होठों पे ये शकरी तराना,
अल्लाह रे !शबाब का ज़माना
चेहरे की दमक फरोग-ऐ-इमाँ, जुल्फों की गिरफ्त काफिराना,
अल्लाह रे !शबाब का ज़माना

अहसास में शबनमी लताफ़त,अनफास में सोज़ शायराना,
अल्लाह रे !शबाब का ज़माना
मर्कूम जबीं पे खुदी पर, ऐसे में महाल है जगाना
अल्लाह रे !शबाब का ज़माना
हाथों के क़रीब माह-ओ-अंजुम,क़दमों के तले शराब खाना ,
अल्लाह रे !शबाब का ज़माना
आईने में गाड़ के निगाहें,बे कसद किसी का गुनगुनाना
अल्लाह रे !शबाब का ज़माना

याद- फ़ैज़

दस्त-ऐ-तन्हाई में ऐ जान-ऐ-जहाँ लरज़ाँ हैं ,
तेरी आवाज़ के साए तेरे होठों के सराब,
दस्त-ऐ-तन्हाई में दूरी के ख़स-ओ-खाशाद तले
खिल रहे हैं तेरे पहलू के समन और गुलाब।

उठ रही है कहीं क़ुरबत से तेरी साँस की आंच,
अपनी खुशबू में सुलगती हुई मद्धम मद्धम,
दूर- उफ़क़ पार चमकती हुई कतरा कतरा,
गो रही है तेरी दिलदार नज़र की शबनम।

इस क़दर प्यार से ऐ जान-ऐ-जहाँ रखा है,

दिल के रुखसार पे इस वक़्त तेरी याद ने हाथ,
यूँ गुमाँ होता है,गर च है अभी सुबह-ऐ-फिराक़,
ढल गया हिज्र का दिल आ भी गयी वस्ल की रात।