Tuesday, June 16, 2009

हर एक बात पे-ग़ालिब

हर एक बात पे कहते हो तुम के " तू क्या है"?
तुम्ही कहो के ये अंदाज़-ऐ-गुफ्तगू क्या है?

न शअल में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा,
कोई बताओ के वोह शोख़-ऐ-तुंदखूँ क्या है?

ये रश्क है के वोह होता है हमसुखन तुम से,
वगरना खौफ़-ऐ-बद आमोज़ी-ऐ-अदू क्या है।

चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन,
हमारी जेब को अब हाज़त-ऐ-रफू क्या है।

जला है जिस्म जहाँ,दिल भी जल गया होगा!
कुरेदते हो जो अब राख जूस्तजू क्या है?

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है?

वोह चीज़,जिस के लिए हमको हो बहशत अज़ीज़,
सिवाए बादः-ऐ-गुलफ़ाम-ऐ-मुश्क बू ,क्या है?

पियूं शराब,अगर खुम भी देख लूँ दो चार,
शीशा-ओ-करह-ओ-कोजः-ओ-सबू क्या है?

रही न ताक़त-ऐ-गुफ्तार,और अगर हो भी,
तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है!

हुआ है "शाह का मुसाहिब",फिरे है इतराता,
वगरना शहर में ग़ालिब तेरी आबरू क्या है?

बर्क़-बिजली
शोख़-चंचल,चपल।
बद आमोज़ी-अशिक्षा,कुशिक्षा।
बादः-शराब।
गुलफ़ाम-गुलाबी,खूबसूरत फूल।
मुश्कबू-कस्तूरी की महक।
कदह-जाम,प्याला।
सबू-घडा(शराब का )।
खुम-गागर,पीपा(शराब जिसमें रखी जाती है)