Monday, May 25, 2009

न पूछ- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

न पूछ जब से तेरा इंतज़ार कितना है,
के जिन दिनों से मुझे तेरा इंतज़ार नहीं।

तेरा ही अक्स है उन अजनबी बहारों में,
जो तेरे लब,तेरे बाज़ू,तेरा किनार नहीं।

लोह-ओ-कलम-फ़ैज़

हम परवरिश-ऐ-लोह-ओ-कलम करते रहेंगे,
जो दिल पे गुज़रती है रक़म करते रहेंगे।
असबाब-ऐ-ग़म -ऐ-अश्क़ बहम करते रहेंगे,
वीरानी-ऐ-दौराँ पे करम करते रहेंगे।
हाँ! तल्खी-ऐ अय्याम अभी और बढेगी,
हाँ! अहल-ऐ-सितम मश्क-ऐ-सितम करते रहेगी।
मन्ज़ूर ये तल्खी, ये सितम हमको गवारा,
दम है तो मुद्दवाले अलम करते रहेंगे।
मैखाना सलामत है तो हम सुर्खी-ऐ-मय से,
तज़इन दर-ओ-बाम-ऐ-हरम करते रहेंगे।
बाक़ी है लहू दिल में तो हर अश्क़ से पैदा,
रंग-ऐ-लब-ओ-रुख़सार-ऐ-सनम करते रहेंगे।

इक तर्ज़-ऐ-तगाफ़ुल है सो वो अम्न को मुबारक,
इक अर्ज़-ऐ-तमन्ना है सो हम करते रहेंगे।