Wednesday, July 22, 2009

ज़ौक़

कुछ दर्द-ए-निहाँ दिल का बयान हो नहीं सकता,
गूंगे का सा है ख्वाब,बयाँ हो नहीं सकता।

ज़ौक़

या रब इस ज़माने के लोगों को क्या हुआ,
जिसका बुरा हो उन को ये कहना - भला हुआ।

ज़ौक़

हुए इंसान सब सोज़-ए-मोहब्बत के लिए पैदा,
फ़रिश्ता होते,गर होते,इबादत के लिए पैदा.

ज़ौक़

मस्जिद में उस ने हम को,आँखें दिखा के मारा,
काफिर की देखो शोखी,घर में बुला के मारा.

ज़ौक़


बरसों हो हिज्र,वस्ल हो इक दम नसीब,कम होगा मुझ सा कोई मुहब्बत में कम नसीब

गर मेरी खाक़ को हो तुम्हारे कदम नसीब,खाया करे नसीब की मेरे,कसम ,नसीब।

माही हो या वोह माह, वो इक हो या हज़ार,बेदाग़हो न दस्ते फलक से ड्रम नसीब।

बेहतर हैं लाख लुत्फ़-ओ-करम से ,तेरे सितम,अपने ज़हेनसीब,के हों ये सितम, नसीब।

इमाँ है तेरा शौक़-ए-बक़ा,जिस को ये न हो ,दीदार उसे ख़ुदा का न हो ऐ सनम,नसीब।

जाते हैं कू-ए-यार को इस में जो हो सो हो,ऐ ज़ौक़ आज़माते हैं आज अपने हम,नसीब।