कुछ दर्द-ए-निहाँ दिल का बयान हो नहीं सकता,
गूंगे का सा है ख्वाब,बयाँ हो नहीं सकता।
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Wednesday, July 22, 2009
ज़ौक़
बरसों हो हिज्र,वस्ल हो इक दम नसीब,कम होगा मुझ सा कोई मुहब्बत में कम नसीब
गर मेरी खाक़ को हो तुम्हारे कदम नसीब,खाया करे नसीब की मेरे,कसम ,नसीब।
माही हो या वोह माह, वो इक हो या हज़ार,बेदाग़हो न दस्ते फलक से ड्रम नसीब।
बेहतर हैं लाख लुत्फ़-ओ-करम से ,तेरे सितम,अपने ज़हेनसीब,के हों ये सितम, नसीब।
इमाँ है तेरा शौक़-ए-बक़ा,जिस को ये न हो ,दीदार उसे ख़ुदा का न हो ऐ सनम,नसीब।
जाते हैं कू-ए-यार को इस में जो हो सो हो,ऐ ज़ौक़ आज़माते हैं आज अपने हम,नसीब।
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