Sunday, January 25, 2009

सोच

क्यों मेरा दिल शाद नहीं है,क्यों खामोश रहा करता हूँ,
छोड़ो मेरी राम कहानी,मै जैसा भी हूँ ,अच्छा हूँ।
मेरा दिल ग़मगीं है तो क्या,ग़मगीं ये दुनिया है सारी,
ये दुःख तेरा है न मेरा,हम सब की जागीर है प्यारी।

तू गर मेरी भी हो जाए,दुनिया के ग़म यूंही रहेंगे,
पाप के फंदे,ज़ुल्म के बंधन ,अपने कहे से कट न सकेंगे।
ग़म हर हालत में महलक है,अपना हो या और किसी का,
रोना,धोना,जी को जलाना,यूँ भी हमारा,यूँ भी हमारा।

क्यों न जहाँ का ग़म अपना लें,बाद में सब तदबीरें सोचें,
बाद में सुख के सपने देखें,सपनों की तआबीरें सोचें,
बेफिक्र धन दौलत वाले,ये आख़िर क्यों खुश रहते हैं?
उनका सुख आपस में बाटें,ये भी आख़िर हम जैसे हैं।

हम ने माना जंग कड़ी है,सर फूटेंगे खून बहेगा,
खून में ग़म भी बह जाएँगे,हम न रहें ग़म भी न रहेगा।