Saturday, November 29, 2008

शायर लोग-दो नज्में-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हर इक दौर में हम, हर ज़माने में हम
दीन-ओ-दुनिया की दौलत लुटाते रहे
फिक्र-ओ-फाके का तोषा संभाले हुए
जो भी रास्ता चुना उस पे चलते रहे
माल वाले हिक़ारत से तकते रहे
त-आन करते रहे हाथ मलते रहे
हम ने उन पर किया हर्फ़-ऐ-हक़ संग ज़न
जिनकी सोहबत से दुनिया लरज़ती रही
जिन पे आंसू बहाने को कोई न था
अपनी आँख उनके ग़म में बरसती रही
सब से ओझल हुए हुक्म-ऐ-हाकिम पे हम
क़ैद खाने सहे ताजियाने सहे
लोग सुनते रहे साज़-ऐ-दिल की सदा
अपने नग्में सलाखों से छनते रहे
खुन्च्का दहर का खुन्च्का आइना
दुःख भरी खलक का दुःख भरा दिल हैं हम

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