Tuesday, January 13, 2009

खिलौने

रेत की नाव,झाग के मांझी,काठ की रेल,सीप के हाथी,
हलकी भारी प्लास्टर की कीलें,मोम के चक जो रुकें न चलें।

राख के खेत धूल के खलिहान,भाप के पैराहन,धुएँ के मकान,
नहर जादू की ,पल दुआओं के ,झुनझुने चंद योजनाओं के।

सूत के चेले,मोंज के उस्ताद,तीशे दफ्ती के ,कांच के फरहाद,
आलिम आटे के और रुए के इमाम,और पन्नी के शायरान कराम।

ऊन के तीर,रुई की शमशीर,सदर मिटटी का और रबर के वजीर।

अपने सारे खिलौने साथ लिए,
दस्त-ऐ-खाली में कायनात लिए,
दस्तानों में बाँध के रस्सी,
हम खुदा जाने कब से चलते हैं,
न तो गिरते हैं न संभलते हैं।


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