Thursday, January 1, 2009

जागिए

जागिए

ढलते ढलते स्याह रात ये कह गयी,
जागिए! आप के दोस्त ने बम बना भी लिया।
और तह-ऐ-आप उसे एक दिन आज़मा भी लिया।

नीले पानी की सब सीम तन मछलियाँ जल गयीं,
नन्हीं परियां,थिरकती हसीं तितलियाँ जल गयीं,
जल गया नब्ज़-ऐ-गेती में जोश-ऐ-नमू *
(दुनिया की नब्ज़ )
जल गयी बाग़ की हसरत-ऐ-रंग-ओ-बू
और बहारों ने खेमा,चमन से उठा भी लिया।

जागिए आप के दोस्त ने बम बना भी
लिया।

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दफ्फात एक ऐसा भयानक धमाका हुआ

जो फ़रिश्ते ज़मीन पर उतर आए थे, उड़ गए ,

ये सुलगती पिघलती ज़मीन छोड़ कर,

आसमानों से एक बार फिर जुड़ गए,

असर-ऐ-नू के लिए जो सहीफ़ नया लाये थे,

उसको अपने परों में छुपा भी लिया,

अब सलामत किसी की है न दुनिया न दीं

रुई की तरह धनकी पडी है खुदा की ज़मीन,

जिस्म इंसान के तुकडे दरख्तों में अटके हुए ,

चाँद अंधेरे की सूली पे लटके हुए,

टूटे तारों को धरती ने खा भी लिया,

जागिए! आप के दोस्त ने बम बना भी लिया।

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