Friday, May 15, 2009

रहिये अब ऐसी जगह-ग़ालिब

रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो,
हम सुखन कोई न हो और हम ज़बां कोई न हो।

बे दर-ओ-दीवार सा इक घर बनाया चाहिए,
कोई हमसाया न हो और पासबाँ कोई न हो।

पड़िये गर बीमार तो कोई न हो बीमार दार,
और अगर मर जाएँ तो नोचख्वां कोई न हो।


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