दरबार-ऐ-वतन में जब एक दिन सब जाने वाले जायेंगे,
कुछ अपनी सज़ा को पहोचेंगे कुछ अपनी जज़ाले जायेंगे।
ऐ खाक़नशीनों उठ बैठो वोह वक़्त क़रीब आ पहुँचा है
जब तख्त गिराए जाएँगे जब ताज उछाले जाएँगे।
अब टूट गिरेंगी ज़ंजीरें अब ज़िन्दानोंकी ख़ैर नहीं,
जो दरया झूम के उठ्ठे हैं तिनकों से न टाले जाएंगे।
कटते भी चलो,बढ़ते भी चलो बाज़ू भी बहोत हैं सर भी बहोत,
चलते भी चलो के अब डेरे,मंज़िलपे ही डाले जायेंगे ।
ऐ ज़ुल्म के मातों लब खोलो चुप रहने वालों चुप कब तक
कुछ हश्र तो उनसे उठ्ठेगा,कुछ दूर तो नाले जायेंगे।
1 comment:
बहुत आभार फैज़ की इस प्रस्तुति का.
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