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Thursday, May 28, 2009
वासोख्तः-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
सच है हमीं को आप के शिकवे बजा न थे,
बेशक सितम जनाब के सब दोस्ताना थे।
हाँ! जो जफा भी आप ने की कायदे से की,
हाँ हम ही कारबंद-ऐ-उसूल-ऐ-वफ़ा न थे।
आए तो यूँ के जैसे हमेशा थे मेहरबां,
भूले तो यूँ के गोया कभी आशना न थे।
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