Monday, July 27, 2009

ग़ालिब

'आइना देख' अपना सा मुंह ले के रह गए,
साहब को दिल न देने पे कितना गुरूर था,
क़ासिद को अपने हाथ से गर्दन न मारिये,
उसकी खता नहीं है ये मेरा क़सूर था।

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