हिम्मत-ए-इल्तजा नहीं बाक़ी,
सब्त का हौसला नहीं बाक़ी।
इक तेरी दीद छीन गई मुझ से,
वरना दुनिया में क्या नहीं बाक़ी।
अपनी मश्क़-ए-सितम से हाथ न खेंच,
मै नहीं या वफ़ा नहीं बाक़ी।
तेरी चश्म-ए-आलम नवाज़ की खैर,
दिल में कोई गिला नहीं बाक़ी।
हो चुका ख़त्म अहद-ए-हिज्र-ओ-विसाल,
जिंदगी में मज़ा नहीं बाक़ी।
1 comment:
ek sadabahar purasar kavita
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