Saturday, August 15, 2009

दर्द जी रात ढल चली है-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

बात बस से निकल चली है,
दिल की हालत सम्हाल चली है।

अब जूनून हद से बढ़ चला है,
अब तबीयत सम्हल चली है।

अश्क खूनाब हो चले हैं,
गम की रंगत बदल चली है।

लाख पैगाम हो गए हैं,
जब सबा इक पल चली है।

जाओ, अब सो रहो सितारों,
दर्द की रात ढल चली है।

1 comment:

Mithilesh dubey said...

शानदार रचना । स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई।