Friday, August 14, 2009

ए वतन मेरे वतन - जोश मलीहाबादी

ऐ वतन,मेरे वतन,रूह-ऐ-रवाँ-अहरार ,
ऐ के ज़र्रों में तेरे बू-ए-चमन , रंग-ए-बहार,
रेज़ अल्मास के तेरे ख़स-ओ-खाशाक में हैं,
हड्डियां अपने बुजुर्गों की तेरी खाक़ में हैं,
तुझसे मुंह मोड़ की मुंह अपना दिखेंगे कहाँ,
घर जो छोडेंगे तो फिर छाँव निछाएंगे कहाँ,
बज़्म-ए-यार में आराम ये पाएंगे कहाँ,
तुझसे हम रूठ के जाएंगे तो जाएंगे कहाँ।
ऐ वतन मेरे वतन,ऐ वतन मेरे वतन।

1 comment:

Anonymous said...

बज़्म-ए-यार में आराम ये पाएंगे कहाँ,

correct:

बज़्म-ए-अग़यार में आराम ये पायेंगे कहां,

yaar = friends

agyaar = enemies