Monday, August 17, 2009

कब तक दिल की खैर मनाएं-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कब तक दिल की खैर मनाएं, कब तक रह दिखलावेंगे
कब तक चमन की मोहलत दोगे,कब तक याद न आओगे

बीता दीद उम्मीद का मौसम, खाक उड़ती है आंखों में
कब भेजोगे दर्द का बादल, कब बरखा बरसाओगे

अहद-ए-वफ़ा या तर्क-ए-मोहब्बत जो चाहो सो आप करो
अपने बस की बात ही क्या है,हम से क्या मन्वाओगे

किस ने वस्ल का सूरज देखा , किस पर हिज्र की रात ढली
गेसुओं वाले कौन थे क्या थे, उन को क्या जतलाओगे

फ़ैज़ दिलों के भाग में है घर भरना भी लुट जाना भी,
तुम उस हुस्न के लुत्फ़-ओ-करम पर , कितने दिन इतराओगे ?




No comments: