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Wednesday, August 12, 2009
दाग़ देहलवी
यूँ चलिए राह-ए-शौक़ में ऐसे हवा चले, हम बैठ बैठकर जो चले भी तो क्या चले। बैठे उदास उठे परेशाँ ख़फ़ा चले, पूछे तो कोई आपसे,क्या आए थे क्या चले ? बैठा है ऐतकाफ़ में ए दाग़-ए-रोज़ादार ऐ काश! मैकदे को ये मर्द-ए-खुदा चले।
1 comment:
दाग़ की बात ही कुछ और है।
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