Thursday, September 3, 2009

"वहीं है " दिल कराइन तमाम कहते हैं-फ़ैज़

वहीं है दिल, कराइन तमाम कहते हैं
वो एक ख़लिश के जिसे तेरा नाम कहते हैं

तुम आ रही हो के बजती हैं मेरी जंजीरें
न जाने क्या मेरे दीवार-ओ-बाम कहते हैं

यही किनार-ए-फ़लक का सियाह्तरीन गोशा
यही है मतला-ए-माह-ए-तमाम , कहते हैं

पियो के मुफ्त लगा दी गई है खून-ए-दिल की कसीर
गिरां है के अब के मय लाल फ़ाम कहते हैं

फ़कीह शहर से मय का जवाज़ क्या पूछें
के चांदनी को भी हज़रत हराम कहते हैं

नवा-ए-मुर्ग़ को कहते हैं अब ज़ियाँ-ए-चमन
खिले न फूल उसे इंतिज़ाम कहते हैं

कहो तो हम भी चलें फ़ैज़ अब नहीं सर-ए-दार
फर्क-ए-मर्तबा ख़ास-ओ-आम कहते हैं

4 comments:

नीरज गोस्वामी said...

आप का ये उर्दू सिखाने का प्रयास बहुत सराहनीय है...शुक्रिया...
नीरज

Sidra Maqsood said...

i really don't understand hindi, plz convert urdu into hindi...

Devi Nangrani said...

Urdu Bhasha ki Chashini Ghazal mein ek nikhar le aati hai.
aur seekhne ki chaah rahegi
Devi Nangrani

Neeraj Rohilla said...

Could you also include the meanings of the highlighted words at the end of the Ghazal? This way one wouldn't need to go through many links. Just a suggestion from a fan.

Regards,