Thursday, November 27, 2008

पांव से लहू को धो डालो- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हम क्या करते, किस राह चलते
हर राह मैं कांटे बिखरे थे ।
उन रिश्तों के जो छूट गए
उन सदियों के यारानो के,
जो इक इक कर के टूट गए
जिस राह चले जिस समत गए
यूँ पाँव लहू लुहान हुए
सब देखने वाले कहते थे
यह कैसी रीत रचाई है,
यह मेहंदी क्यों लगाई है
वोह कहते थे क्यों काहाज़-ऐ- वफ़ा
का नाहक चर्चा करते हों !
पाँव से लहू को धो डालो
यह राहें जब अट जायेंगी
सौ रास्ते इन से फूटेंगे
तुम दिल को सम्हालो जिस में अभी
सौ तरह के नश्तर टूटेंगे .

1 comment:

Udan Tashtari said...

वाह वाह!! फैज साहब की इस रचना को पेश करने का आभार मित्र.