Saturday, January 24, 2009

इंशाजी- हाँ तुन्हें भी देखा

इंशाजी,हाँ तुम्हें भी देखा

इंशाजी,हाँ,तुम्हें भी देखा,दर्शन छोटे नाम बहुत ,
चौक में खोटा माल सजा कर ले लेते हो दाम बहोत,
यूँ तो हमारे दर्द में घायल,सुबह बहोत हो शाम बहोत,
इक दिन साथ हमारा दोगे इस में हमें कलाम बहोत।
बातें जिन की गर्म बहोत हैं,काम उन्हीं के खाम बहोत,
कॉफी के हर घूँट पे, दो हांकने में आराम बहोत।

दुनिया की औकात कही,कुछ अपनी भी औकात कहो,
कब तक चाक-ऐ-दहन को सी कर गूंगी बहरी बात कहो,
दाग़-ऐ-जिगर को ला लाए रंगीं,अश्कों को बरसात कहो,
सूरज को सूरज न पुकारो,दिन को अंधी रात कहो.


5 comments:

निर्मला कपिला said...

dunia ki aukaat kahi-----bahut badiyaa likha hai

मोहन वशिष्‍ठ said...

आप सभी को 59वें गणतंत्र दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं...

जय हिंद जय भारत

अनिल कान्त said...

अच्छी रचना ...पसंद आयी

अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

Dr. Amar Jyoti said...

बहुत ख़ूब!

संगीता पुरी said...

बहुत अच्‍छा ...... गणतंत्र दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं...