हाँ,ऐ दिल-ऐ-दीवाना
वोह आज की महफ़िल में, हम को भी न पहचाना,
क्या सोच लिया दिल में, क्यों हो गया बेगाना,
हाँ, ऐ दिल-ऐ-दीवाना।
वो आप भी आते थे,हम को भी बुलाते थे,
किस चाह से मिलते थे,क्या प्यार बताते थे,
कल तक जो हक़ीक़त थी,क्यों वोह आज है अफसाना,
हाँ,ऐ दिल-ऐ-दीवाना।
बस ख़त्म हुआ किस्सा, अब ज़िक्र न हो उसका,
वो शख्स-ओ-फा-ओ-शमन,अब अपना हुआ दुश्मन,
अब उस से नहीं मिलन,
घर उस के नहीं जाना,हाँ,ऐ दिल-ऐ-दीवाना।
हाँ,कल से न जाएँगे,पर आज तो हो आएं,
उस को नहीं पा सकते,अपने ही को खो आएं,
तू बाज़ न आएगा,मुश्किल तुझ को समझाना,
वो भी तेरा कहना था,ये भी तेरा फरमाना,
चल,ऐ दिल-ऐ-दीवाना.
1 comment:
प्रस्तुति के लिए आभार
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं सहित
सादर
द्विजेन्द्र द्विज
http:/www.dwijendradwij.blogspot.com/
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