Wednesday, May 6, 2009

जौहर

जौहर
मै शोला था------मगर यूँ राख के तूदे ने सर कुचला,
के इक सिले से पेंच ओ ख़म में ढल जाना पड़ा मुझको।
मै बिजली था------मगर वोह बर्फ आ गयी बदलियाँ छाईं ,
के दब के उन चट्टानों में पिघल जन पड़ा मुझको।
मै तूफ़ान था------मगर क्या कहें उस तशन समंदर को,
के सर टकरा के साहिल ही से रुक जाना पड़ा मुझको।
मै आंधी था-मगर वोह खाव्ब आलूदा फिजा पायी,
के ख़ुद अपनी ही ठोकर खा के झुक जाना पड़ा मुझको।

मगर अब इस का रोना क्या है, क्या था देखिये क्या हूँ!
मै इक ठिठुरा हुआ शआला हूँ,इक सिकुडी हुई बिजली,
अशर नश्व ओ नुमा पर डाल ही देता है गहवारा ,
मै इक सिमटा हुआ तूफ़ान हूँ,एक सहमी हुई आंधी।

मगर म्आबूद बेदारी ! कहिए,फितरत बदलती है,
धुवें को गर्म होने दे,भड़कना अब भी आता है,
मेरी जानिब से इत्मीनान रख आतिश-ऐ-नूर-ऐ-रहबर,
ज़रा बादल तो बिखराएं,कड़कना अब भी आता है।

थपेडे हाँ यूँहीं पैहम,थपेडे मौज-ऐ-आज़ादी,
बहा दूँगा मताअ कश्ती-ऐ-महकूमी बहा दूँगा,
झकोले हाँ यही झकोले सर सर-ऐ-हस्ती,
हिला दूँगा तदाद-ऐ- ज़िस्त की चूली हिला दूँगा।


  • अशर-दुष्ट
  • गहवारा-पलना,झूला।
  • नश्व ओ नुमा-पालनपोषण
  • म्आबूद-खुदा,परमेश्वर।
  • बेदारी-जागृति,कृपा।
  • पैहम-निरंतर
  • मताअ-सम्पत्ती।
  • महकूमी-गुलामी।
  • तदाद-दुश्मनी।
  • चूली-डरपोकपन,नामर्दगी।
  • ज़िस्त-अस्तित्व,जिंदगी.

1 comment:

Udan Tashtari said...

बढ़िया है.