This is for all those who love urdu,would like to Read and write Urdu.
Wednesday, May 13, 2009
इंशाजी क्या बात बनेगी
इंशाजी क्या बात बनेगी,हम लोगों से दूर हुए,
हम किस दिल का रोग बने,किस सीने का नासूर हुए,
बस्ती बस्ती आग लगी थी,जलने पर मजबूर हुए,
रिन्दों में कुछ बात चली थी,शीशे चकनाचूर हुए।
लेकिन तुम क्यों बैठे बैठे आह भरे रंजूर हुए,
अब तो एक ज़माना गुज़रा,तुम से कोई क़सूर हुए।
ऐ लोगों क्यों भूली बातें याद करो,क्या याद दिलाव
काफ़िले वाले दूर गए,बुझने दो गर बुझता है अलाव.
एक मौज से रुक सकता है तूफानी दरिया का बहाव?
समय समय का राग अलग है समय समय का अपना भाव.
आस की उजड़ी फुलवारी में यादों के गुंचे न खिलाओ,
पिछले पहर के अंधियारे में काफुरी शम्में न जलाओ।
इंशाजी वही सुबह की लाली,इंशाजी वही शब् का समां,
तुम्ही ख़याल की जगर मगर में भटक रहे हों जहाँ तहां.
वही चमन वही गुल बूटे हैं,वही बहारें वही खज़ां,
इक कदम की बात है यूँ तो रूपहले खाबों का जहाँ.
लेकिन दूर उफ़क़ पर देखो लहराता घनघोर धुंवां,
बादल बादल उमड़ रहा है सहज सहज पेचां पेचां।
मंजिल दूर देखे तो राही राह में बैठा रहे सताए
हम भी तीस बरस के मांदे,यूंही रूप नगर हो आए
रूप नगर की राजकुमारी,सपनों में आए बहलाए,
क़दम क़दम पर मदमाती मुस्कान बिखेरे,हाथ न आए।
चंद्रमा महाराज की ज्योति ,तारे हैं आपस में छुपाए,
हम भी घूम रहे हैं ले कर कासा अंग भभूत रमाए,
जंगल जंगल घूम रहे हैं रमते जोगी सीस नवाए।
तुम परियों के राज दुलारे तुम ऊंचे तारों के कोई,
हम लोगों के पास यही उजड़ा अम्बर उजड़ी धरती.
तुम तो उड़न खटोले ले कर पहुँचो तारों की नगरी,
हम लोगों की रूह कमर तक धरती के दलदल में फँसी.
तुम फूलों की सेजें धुन्धो और नदिया संगीत भरी
हम पतझड़ की उजड़ी बेलें ज़र्द ,ज़र्द,उलझी,उलझी।
हम वो लोग हैं गिनते थे जिन को तुम प्यारों में,
हाल हमारा सुनते थे तो लोटते थे अंगारों में।
आज भी कितने नाग छुपे हैं,दुशमन के बमबारों में,
आते हैं नैपाम उगाते वहशी सब्ज़ जारों में ।
आह सी भर के रह जाते हो बैठ के दुनिया दारों में,
हाल हमारा छपता है जब ख़बरों में अखबारों में।
औरों की तो बातें छोडो, और तो जाने क्या क्या थे,
रुस्तम से कुछ और दिलावर,भीम से बढ़ कर योध्हा थे।
लेकिन हम भी तुंद बच्रती मौजों का इक धारा थे,
अन्याय के सूखे जंगल को झुलसाती इक ज्वाला थे।
ना हम इतने चुप चुप थे तब,ना हम इतने तनहा थे,
अपनी ज़ात में राजा थे हम,अपनी ज़ात में सेना थे।
तूफानों का रेला थे हम,बलवानों की सेना थे.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
ना हम इतने चुप चुप थे तब,ना हम इतने तनहा थे,
अपनी ज़ात में राजा थे हम,अपनी ज़ात में सेना थे।
बहुत सुन्दर
आभार
मुम्बई टाईगर
हे प्रभु यह तेरापन्थ
Plz. May i know who wrote this, the author's name??
कुछ बातें हैं जो दिल के तरअनूम को छू गई।।।
कुछ ये गजले हैं जो दिल को झकझोर गई..
उम्मीद करता हूं आपका reply जरूर आएगा।।
You can mail me also my mail=harshsinghdeo@gmail.com
Post a Comment