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Tuesday, May 26, 2009
हमारे दम से है-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
हमारे दम से है कू-ऐ-जुनूँ में अब भी खजल, अबा-ऐ-शेख़ क़बा-ऐ-अमीर-ओ-ताज-ऐ-शही। हमीं से सुन्नत-ऐ-मंसूर-ओ-कैस जिंदा है, हमीं से बाकी है गुल-दामनी -ओ-कजकुलही ।
1 comment:
बहुत सुंदर रचना है। फैज का क्या मुकाबला?
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