खल्वत की रातें,फ़ोन की बातें,महबूब की मेरे बात "कुछ और",
महफिल में जो आप मिलें , बनते हैं जनाब "कुछ और"
आपकी चाहत,आपकी आराइश,आपके लुत्फ़-ओ-ख्वाब "कुछ और"
बाज़रगाँ फिर हाथ मलें और आप कहें - " कुछ और , कुछ और "।
आज कहा इस दिल ने मेरे "बहुत हुआ " करें काज "कुछ और "
मैंने कहा या तू चुप रह या कर ले तू बात "कुछ और "
1 comment:
Marhaba...!!! Walla Sheerane taqt pe langotiya yaar apna..!! Bahut khoob likha. Likho kuch aur.
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