बहुत शुक्रिया इस ब्लाग को शुरू करने के लिये, रोज धीरे धीरे करके उर्दू के शब्द सीख रहा हूँ और कुछ पुराने अशार जिनका लगभग अर्थ ही पता था आईने की तरह जेहन में साफ़ हो रहे हैं। आपकी इस पोस्ट में जोश मलीहाबादी के "ऐ वतन मेरे वतन" नज्म के काफ़ी शब्द आये हैं।
रेज-ए-अल्मास के तेरे खस-ओ-खाशाद में हैं, हड्डियाँ अपने बुजुर्गों की तेरी खाक में हैं।
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बहुत शुक्रिया इस ब्लाग को शुरू करने के लिये,
रोज धीरे धीरे करके उर्दू के शब्द सीख रहा हूँ और कुछ पुराने अशार जिनका लगभग अर्थ ही पता था आईने की तरह जेहन में साफ़ हो रहे हैं।
आपकी इस पोस्ट में जोश मलीहाबादी के "ऐ वतन मेरे वतन" नज्म के काफ़ी शब्द आये हैं।
रेज-ए-अल्मास के तेरे खस-ओ-खाशाद में हैं,
हड्डियाँ अपने बुजुर्गों की तेरी खाक में हैं।
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