Monday, August 24, 2009

क्या करें- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मेरी तेरी निगाह में
जो लाख इंतज़ार हैं
जो मेरे तेरे तन बदन में
लाख दिल फ़िगार हैं
जो मेरी तेरी उँगलियों की बेहिसी से
सब क़लम नज़ार हैं
जो मेरे तेरे शहर की
हर गली में
मेरे तेरे नक़्श-ए-पा के बेनिशाँ मज़ार हैं
जो मेरी तेरी रात के
सितारे ज़ख्म ज़ख्म हैं
जो मेरी तेरी सुबह के
गुलाब चाक चाक हैं
ये ज़ख्म सारे बे दवा
ये चाक सारे बे रफू
किसी पे राख चाँद की
किसी पे ओस का लहू
ये है भी नहीं,बता ?
ये है के महज़ जाल है
मेरे तुम्हारे इनक्बूत-ए-वहम का बुना हुआ
जो है तो इसका क्या करें
नहीं,है तो भी क्या करें
बता, बता
बता,बता

No comments: