Wednesday, August 26, 2009

सुना करो मेरी जान इन से उन से - कैफ़ी आज़मी

सुना करो मेरी जान, इन से उन से अफ़साने
सब अजनबी हैं यहाँ , कौन किसको पहचाने

यहाँ से जल्द गुज़र जाओ काफिलेवालो !
हैं मेरी प्यास के फूँके हुए ये वीराने ।

मेरे जूनून-ए-परस्तिश से तंग आ गए लोग
सुना है बंद किए जा रहे हैं बुतखाने

जहाँ से पिछले पहर कोई तश्न काम उट्ठा
वहीँ पे तोड़े हैं यारों ने आज पैमाने

बहार आए तो मेरा सलाम कह देना
मुझे तो आज तलब कर लिया है सहरा ने

हुआ है हुक्म कि कैफ़ी को संगसार करो
मसीह बैठे हैं छुप के कहाँ ख़ुदा जाने।

2 comments:

Anonymous said...

Bahut Khoob...!!

Anonymous said...

बेहतरीन इन्तिख़ाब! एकाध शे'र में इमला (spelling) की अग़लात दर आईं हैं, जिन्हें ज़ैल में दुरुस्त किया गया है --

१. यहाँ से जल्द गुज़र जाओ क़ाफ़िलेवालो ('वालों' नहीं)

२. जहां से पिछले पहर कोई तश्नःकाम उट्ठा ("तश्त काम उठा" नहीं)
वहीँ पे तोड़े हैं यारों ने आज पैमाने ('तोडे' नहीं)

३. हुआ है हुक्म कि "कैफ़ी" को ...("हुक्म की" नहीं)

४. बुतख़ाने, ख़ुदा ("बुतखाने", "खुदा" नहीं)