Tuesday, August 11, 2009

ग़ज़ल - कैफ़ी आज़मी

पत्थर के खुदा वहां भी पाए,
हम चाँद से आज लौट आए।
दीवारें तो हर तरफ़ खड़ी हैं,
क्या हो गए मेहरबान साए।
जंगल की हवाएं आ रही हैं,
काग़ज़ का ये शहर उड़ न जाए।
लैला ने नया जन्म लिया है,
है क़ैस कोई जो दिल लगाए?
है आज ज़मीन का गुस्ल-ए-सेहत,
जिस दिल में हो जितना खून लाये।
सेहरा सेहरा लहू के खेमे,
फिर प्यासे लब-ए-फ़ुरात आए।

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया गज़ल प्रेषित की है।बधाई।