Wednesday, December 31, 2008

जब उम्र की नकदी ख़त्म हुई-इब्ने इंशा

जब उम्र की नक़दी ख़तम हुई

अब उम्र की नक़दी ख़त्म हुई
अब हम को उधार की हाजत है
है कोई जो साहूकार बने?
है कोई जो देवन हार बने ?

कुछ साल महीने दिन लोगों!
पर सूद ब्याज के बिन लोगों !
हाँ,अपनी जाँ के खजाने से,
हाँ,उम्र के तोषे खाने से,

क्या कोई भी साहूकार नहीं?
क्या कोई देवन हार नहीं ?

जब नाम उधार का आया है,
क्यों सब ने सर को झुकाया है
कुछ काम हमें निबटाने हैं,
जिन्हें जानने वाले जानें हैं।
कुछ प्यार व्यार के धंधे हैं,
कुछ जग के दूसरे फंदे हैं।

हम मांगते नहीं हज़ार बरस,
दस पाँच बरस,दो चार बरस,
हाँ,सूद ब्याज भी दे लेंगे ,
हाँ,और खराज भी दे लेंगे,
आसान बने दुश्वार बने ,
पर कोई तो देवन हार बने।

तुम कौन?तुम्हारा नाम है क्या?
कुछ हम से तुम को काम है क्या?
क्यों इस मज्मू-अ में आयी हो?
कुछ मांगती हो ? कुछ लाई हो ?
ये कारोबार की बातें हैं,
ये नक़द उधार की बातें हैं,
हम बैठे हैं कशकोल* लिए
(कशकोल-भिखापात्र)
सब उम्र की नक़दी ख़त्म किए,
गर शायर के रिश्ते आयी हो ,
तब समझो जल्द जुदाई हो।

अब गीत गया संगीत गया,
हाँ,शा-अर का मौसम बीत गया ,
अब पतझड़ आयी,पात गिरे,
कुछ सुबह गिरें,कुछ रात गिरें,
ये अपने यार पुराने हैं,
इक उम्र से हमको जानें हैं,
उन सब के पास है माल बहोत,
हाँ ! उम्र के माह-ओ-साल बहोत,
इन सब को हमने बुलाया है,
और झोली को फैलाया है,
तुम जाओ उन से बात करें,
हम तुम से न मुलाक़ात करें।

क्या पाँच बरस ?
क्या उम्र अपनी,के पाँच बरस ?
तुम जाँ की थैली लाई हो ?
क्या पागल हो ? सौदाई हो ?
जब उम्र का आख़िर आता है ,
हर दिन सदियाँ बन जाता है।

जीने की होश ही ज़ाली है,
है कौन जो इस से खाली है,
क्या मौत से पहले मरना है?
तुम को तो बहोत कुछ करना हैं,
फिर तुम हो हमारी कौन भला?
हाँ,तुम से हमारा क्या रिश्ता?
क्या सूद ब्याज लालच है ?
किसी और खराज का लालच है?
तुम सोहनी हो,मनमोहनी हो,
तुम जा कर पूरी उम्र जियो,
ये पाँच बरस,ये चार बरस,
छिन जाएँ तो लगें हज़ार बरस।

सब दोस्त गए सब यार गए,
थे जितने साहूकार गए,
बस एक ये नारी बैठी है,
ये कौन है?क्या है?कैसी है?
हाँ उम्र हमें दरकार भी है?
हाँ,जीने से हमें प्यार भी है।

जब मांगीं जीवन की घड़ियाँ,
" गुस्ताख अँखियाँ कत जलदियां "
हम क़र्ज़ तुमें लौटा देंगे,
कुछ और भी घड़ियाँ लावेंगे,
जो सा अत माह-ओ-साल नहीं,
वोह घड़ियाँ जिन को ज़वाल* नहीं
(ज़वाल- पतन,कम होना)
लो अपने जी में उतार लिया,
लो हम ने तुम से उधार लिया।



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