हाँ, बगावत आग,बिजली,मौत,आंधी है मेरा नाम,
मेरे गर्दो पेश में अजल* मेरी जलवे में क़त्ल-ऐ-आम।
(*अजल-मौत)
ज़र्द हो जाता है मेरे सामने रु-ऐ-हयात,
काँप उठती है मेरी चीन-ऐ-जबीं से कायनात।
जंग के मैदान में मेरी सैफ की असरी फू
खाक बन जाती है बिजली, बर्फ हो उठती है लू।
ज़िक्र होता है मेरा पुरहौल * पैकारों के साथ,
जेहन में आती हूँ तलवारों की झंकार के साथ।
(पैकार-युद्ध , पुरहौल-भयंकर )
अशरा अशर करवटें मेरे दिल आज़ाद की ,
जिन से गिर जाती हैं डाटें क़सर अस्ताब्दाद की ।
मेरी इक जुम्बिश से होता है जहाँ ज़र ओ ज़र
मेरी सर ताबी शर्या का झुका देती है सर।
इक चिंगारी मेरी,जन्नत को करती है तबाह
माँगता रहता है मेरी आग से , दोज़ख पनाह ।
अल-हजर! मेरी मेरी कड़क का ज़ोर हंगाम-ऐ-मसाफ,
साफ़ पड़ जाता है ऐवान-ऐ-हुकुमत में शकाफ।
अशरा अशर बज्म-ऐ-हस्ती में मेरी गुल्बारियाँ,
टुकड़े टुकड़े दस्त-ओ-बाजू ,रेज़ा रेज़ा अस्त्खुन्वा ।
अलामान ओ अल हदज़!मेरी कड़क मेरा जलाल ,
खून-ऐ-सफा की गरज,तूफ़ान,बर्बादी,क़ताल ।
बर्छियां,भाले,कमानें,तीर,तलवारें,कटार,बर्कें,परचम,आलम,घोड़े,प्यादे,शहसवार ।
आँधियों से मेरी अड़ जाता है,दुनिया का निजाम।
मौत है खुराक मेरी,मौत पर जीती हूँ मै,सैर हो कर गोश्त खाती हूँ,
लहू पीती हूँ मै।
प्यास से बाहर निकल पड़ती है जब मेरी ज़बान,बहने लगती हैं सर-ऐ-मैदान
लहू की नदियाँ।
जंग की सूरत से गो हंगामा मै करती हूँ शुरू,
अमन की सुबहें मेरे खंजर से होती हैं तुलू अ ,
मेरा मोल्द मुफलिसी का दिल है उस्रत का दिमाग़।
गोद में नादारियों की परवरिश पाती हूँ मै,बेजारी के बाजुओं पर
जुल्फ बिखराती हूँ मै।
भूख हर चंद क्या क्या सर गरां होती हूँ मै,भूख ही का दूध पी पी कर जवान होती हूँ मै।
गर्म नाले मूँह अंधेरे से जगाते हैं मुझे,अश्क़-ऐ-ग़म हर सुबह आइना दिखाते हैं मुझे।
मुझको बचपन के ज़माने ही से हर सुबहो मसा,पेट की मारी हुई मख्लूक देती है अन्ज़ा।
जिस को हासिल जिंदगी का कुछ मज़ा होता नहीं,कुछ भी जिस के पास माँज़ी के सिवा होता नहीं।
जिस की चश्म तरीं यूँ खाते हैं अरमान पेंच-ओ-ताब,धर पर तलवार की जिसे श-आल-आफताब,
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