Monday, July 13, 2009

ग़ज़ल-फैज़

कब ठहरेगा दर्द-ऐ-दिल कब रात बसर होगी,
सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी।

कब जान लहू होगी,कब अश्क गोहर होगा,
किस दिन तेरी सुनवाई ऐ दीदः -ऐ-तर होगी।

कब महकेगी फ़स्ल-ऐ-गुल कब बहकेगा मैखाना,
कब सुबह-ऐ-सुखन होगी,कब शाम-ऐ-नज़र होगी।

कब तक अब राह देखें ऐ क़ामत-ऐ-जानाना ,
कब हश्र मुआइन है,तुझको तो ख़बर होगी।

वाइज़ है न ज़ाहिद है, नासेह है न क़ातिल है,
अब शहर में यारों की किस तरह बसर होगी.