कब ठहरेगा दर्द-ऐ-दिल कब रात बसर होगी,
सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी।
कब जान लहू होगी,कब अश्क गोहर होगा,
किस दिन तेरी सुनवाई ऐ दीदः -ऐ-तर होगी।
कब महकेगी फ़स्ल-ऐ-गुल कब बहकेगा मैखाना,
कब सुबह-ऐ-सुखन होगी,कब शाम-ऐ-नज़र होगी।
कब तक अब राह देखें ऐ क़ामत-ऐ-जानाना ,
कब हश्र मुआइन है,तुझको तो ख़बर होगी।
वाइज़ है न ज़ाहिद है, नासेह है न क़ातिल है,
अब शहर में यारों की किस तरह बसर होगी.
1 comment:
laajavaab gazal ke liye shukriyaa
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